Jai Shree Shyam ! Jai Shree Shyam ! Jai Shree Shyam
नमस्कार दोस्तों मैं हूँ आपकी सखी राधिका आज आपके साथ एक ऐसा किस्सा साँझा करूंगी जो कि जुड़ा है आस्था और विश्वास से , अपने भगवान, अपने प्रभु अपने ईश्वर के प्रति प्रेम से। कहते हैं न भगवान से डरते तो सभी लोग हैं उनकी पूजा भी सभी लोग करते हैं पर उनसे निस्वार्थ भाव से प्रेम कोई कोई ही करता है। बहुत से लोग कहते है हम भगवान से प्रेम करते है पर अगर उनसे पूछा जाये कि आपका भगवान से क्या रिश्ता है तो सब ऐसे सतबध हो जाते है जैसे किसी अनजान से उनके रिश्ते के बारे में पूछा गया हो या फेर कुछ लोग ऐसे कहते हैं भगवान तोह हमारे पालनहार हमारे इष्ट है हमें सबकुछ देने वाले वही है।
पर प्रश्न ये है कि जो आपको सबकुछ देता हैं उनसे आपसे क्या रिश्ता हैं उनकी महत्वता आपकी जीवन में क्या हैं आपका उनके प्रति जो प्रेम हैं उसका क्या भाव है ?
हम उनकी पूजा अर्चना करते है वह किस भाव से करते हैं ?

तोह आज हम एक ऐसा किस्सा जानेंगे एक व्यक्ति के मन के विचारों का कि कैसे उसने अपने भगवान के प्रति आस्था को अस्तित्व दिया ?
यह कहानी भारत के एक राज्य हरियाणा के रोहतक शहर में कुछ युवको द्वारा निर्माण करवाए गए ” श्री खाटूश्याम बाबा रोहतक धाम ” मंदिर कि जो कि अभी २ वर्षो पहले ही संजय कॉलोनी के स्थानीय युवको द्वारा निर्माण करवाया गया।
एक विचार
कुछ सालो पहले तक रोहतक शहर के संजय कॉलोनी में सभी व्यक्ति अपनी अपनी जिंदगी में व्यस्त अपनी कार्येशैली में व्यस्त थे। आस पड़ोस के लोगो में प्रेम तोह था पर मेलजोल नहीं था सब अपने अपने जीवन कि जिम्मेदारियारियाँ पूरी करने में व्यस्त थे। भगवान के प्रति श्रद्धा,
प्रेम, आस्था तोह सबके मन में थी पर वह उनके अपने घर तक ही सिमित थी। जिस समय सब अपने जीवन कार्यो में व्यस्त थे उसी समय वही के रहने वाले कुछ युवको के मन में अपने भगवान के प्रति भक्ति के एक नए भाव का विचार उत्पन्न हो रहा था। वहां के रहने वाले एक व्यक्ति माधव और उनके कुछ मित्र “श्री खाटूश्याम बाबा” के परम भक्त थे जो कि श्री श्याम बाबा के आदेशों पर ही उनकी सेवा किसी न किसी रूप में किया करते थे कोई अपने मन में जाप करके तोह कोई उनके प्रतिमा रूप की दिन रेन सेवा करके अपने भगवान के प्रति अपना प्रेम व्यक्त किया करते थे।
कहते है इंसान के जीवन में जो कुछ भी होता है वो उनके भगवान की इच्छा से ही होता हैं। भक्त अपने भगवान नहीं चुनते अपितु भगवान अपने भक्त चुनते हैं।
अब इस वाक्य से लोगो के मन में प्रश्न होता हैं की अगर भगवन अपने भक्त को चुनते हैं तोह क्या भगवन भी अपने भक्तों में भेदभाव करते हैं भगवान के लिए तोह सब बराबर होते हैं।
तोह इसका जवाब है हाँ भगवान के लिए सब बच्चे बराबर होते हैं पर जहाँ कुछ विशेष कार्यो की बात आती हैं वह भगवान कुछ ही भक्तों का चुनाव करते हैं।
जिस समय किसी बच्चे का जन्म होता हैं तोह जनम से लेकर कुछ वर्षो तक वह अपने जीवन सुखद समय को जीता है अपने माता पिता और परिवार का स्नेह और प्रेम प्राप्त करता हैं और इसी समय में वह अपने जीवन का आधार बनाना शुरू करता है अपने माता पिता से संस्कार प्राप्त करता है सही और गलत में भेद प्राप्त करता हैं उसके उपरांत वह अपना शिक्षा ग्रहण करता और जीवन को जीवन को जीने के सही तरीके सीखता है।
भगवान की कृपा से सभी बचो को सामान शिक्षा मिलती है बस उस शिक्षा का माध्यम अलग हो सकता हैं किसी को शिक्षा उनके गुरु के माध्यम से प्राप्त होती है और किसी के जीवन में भगवान स्वयं परीक्षाओ के माध्यम से उनको शिक्षा देते है। शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात् भगवान सबको सामान प्रेम और अवसर देते हैं अपने जीवन को बेहतर बनाने का ,अपनी शिक्षा का सदोपयोग कर जगत कल्याण के कार्यों में करने का, धर्म और सत्यता की राह पर चलकर जीवन जीने का। समय समय पर परीक्षा लेकर भगवान अपने विशेष कार्यों के लिए अपने भक्तों का चुनाव करते हैं कुछ लोग भगवान की परीक्षा पास कर जाते हैं और कुछ लोग नहीं ।

अब यह एक सत्य यह भी है कि व्यक्ति अपने बारे में सब जनता है कि वह कहाँ गलत हैं और कहाँ नहीं। अपने मन में उसे उचित रूप से पता होता हैं की उसने कहाँ किस समय पर क्या गलती की हैं की हैं फिर में वह अपनी गलतियों को ऐसे भुला देते हैं जैसे वो सही हैं और फेर भगवान से पूछते हैं की उनकी क्या गलती थी और जब व्यक्ति को उसकी गलती बता दी जाये तोह वह अनजान बन जाता हैं की उसे ज्ञात नहीं था जबकि कुछ लोग अपनी गलती को स्वीकार कर उसका पश्च्याताप करते है।
ऐसा क्यो, शिक्षा तो सबको बराबर दी गयी फेर परीक्षा के समय पर क्यों सही और गलत में भेद न कर गलत का चुनाव किया गया क्योकि भगवान सबको जीवन के पाठ बराबर सिखाता है क्वेश्चन पेपर भी बराबर ही सबको देता हैं पर उत्तर का चुनाव केवल अपने भक्त पर छोड़ता हैं सही उत्तर वाले व्यक्ति को ही विशेष और जिम्मेदारी वाले कार्य दिए जाते हैं। )
जिस समय उस क्षेत्र के सभी वयक्ति अपनी जीवन शैली में व्यस्त थे उसी समय वह के युवक माधव और उनके मित्रो के मन में भक्ति का एक नया भाव उत्पन्न हुआ। एक रोज सब सभी मित्र एक साथ बैठ कर अपना समय व्यतीत कर रहे थे तोह किसी के मुख से एक बात निकली कि क्यों न अपने क्षेत्र में “श्री श्याम बाबा ” का मंदिर निर्माण करवाया जाये। अब किसी के मन में एक दम से इतना नेक और बड़ा विचार आना भी उनके प्रभु का ही कोई इशारा हो सकता हैं। जैसे ये विचार से किसी के मन से निकल कर मुख पर आया तोह सब मित्रो के मन में भक्ति की एक नयी राह और चेतना का विकास हु। उसी समय माधव और उसके मित्रों ने यह निश्चय कर लिया की “श्री खाटूश्याम बाबा ” का मंदिर ज़रूर बनेगा।
अब मंदिर बनाने का विचार तोह आ गया और मंदिर बनाने का निर्णय भी ले लिया गया परन्तु अब आगे क्या मंदिर बनाना कोई सरल कार्य तोह था नहीं और न ही सबके पास इतना पैसा था की एक मंदिर का निर्माण उससे हो जाये लेकिन कहते हैं न जहाँ चाह होती हैं वहां राह होती है और जब भगवान ने भक्तो के मुख में शब्द डाले हैं तोह उनको पूरा करने का मार्गदर्शन करना भी भगवान की ही जिम्मेदारी थी। जैसे जैसे भक्तों के मन में विचार की ज्योत बढ़ती गयी वैसे वैसे उन्हें रास्ता नज़र आता गय।
सब मित्रों ने यह निर्णय लिया की वह पैसे एकत्रित करेंगे तोह उसी समय माधव और उनके मित्रों ने अपनी जमापूंजी में कुछ राशि निकालकर मंदिर निर्माण के कार्य के लिए प्रभु की सेवा में अर्पण कर दी । अब कहते हैं हर कार्य की शुरवात पहले स्वयं से करे उसके बाद सब स्वतः ही सब जुड़ते जायेंगे। अब जैसे ही सब मित्रों ने कुछ जमाराशि मंदिर निर्माण के कार्य में अर्पित करि थोड़े समय बाद ही उनके प्रभि ने उनके इस कार्य को गति दे दी उनके प्रभु की कृपा लोग स्वतः ही मंदिर निर्माण के कार्य से जुड़ते गए और अपना अपना राशि योगदान करने लगे।
बाबा की कृपा से सभी मित्रों ने सब लोगो के सहयोग से मंदिर का शिलान्यास कर दिया।
शिलान्यास बहुत ही धार्मिक रीति रिवाज़ो के अनुसार किया गया। सभी भक्तो और स्थानीय निवासियों के मन में भोत ही ख़ुशी थी और इंतज़ार था की किस दिन मंदिर का पूर्ण निर्माण होगा और उनके इष्ट उनके पास में विराजित होंगे। शिलान्यास के पश्चात् सभी मित्रों ने मिलकर मंदिर के निर्माण कार्यों पर जोर दिया। मंदिर के निर्माण कार्यों में बहुत सी मुश्किलें आयी पर भक्तों ने अपना विश्वास और संयम बनाये रखा। जितनी भी मुश्किलें आयी सबका सामना बड़े ही आत्मविश्वास और प्रेम से किया। धीरे धीरे जैसे जैसे समय बीतता गया मंदिर का निर्माण कार्य भी सफलता की सीढ़ी चढ़ता गया।


फिर एक दिन आया और मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो गया और भक्तों के मन ख़ुशी और भक्तिभाव से भर गया।
अब सभी भक्तों को अपने प्रभु “श्री खाटूश्याम बाबा” के उस ईमारत में विराजित होने का इंतज़ार था। अब आप सोचेंगे मैंने ईमारत क्यों कहाँ पर कहते है न मंदिर तभी सम्पूर्ण होता हैं जब उसमे भगवान विराजित हो जहाँ पर भक्तजन अपने प्रभु को ढूंढ़ने उनका प्रेम और स्नेह प्राप्त करने के लिए आये जहाँ भक्तों को के मन में आशा की उम्मीद जगती है और जहाँ उन्हें अपने इष्ट की उपस्थिति का आभास हो। जहाँ पर किसी भी भक्त को अपने अराधेय की उपस्थिति का अहसास हो वह जगह मंदिर ही होती हैवार्ना वह जगह बस ईंट पत्थरो की ईमारत ही कहलाती है।
फिर वो दिन भी जल्द ही आ गया “श्री खाटूश्याम बाबा ” की कृपा और भक्तोँ की मेहनत व् सहयोग के द्वारा बाबा के मंदिर में विराजित होने का दिन निश्चित कर लिया गया। सब भक्तोँ में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी। सभी भक्तोँ ने बड़ी जोरो से बाबा के स्वागत की तैयारियां शुरू कर दी।
हर घर में सिर्फ एक ही बात गूंज रही थी की बाबा आने वाले हैं उनके प्रभु आने वाले है। भक्तोँ का एक एक दिन बड़े ही मश्किल से बाबा के इंतज़ार में काट रहा था मनो उनके पैर ज़मीन पर ही थी और उनकी आंखे बस अपने प्रभु के दर्शन को ललाहित थी। पुरे मंदिर को फूलो से सजा दिया साड़ी को कॉलोनी को लाइट द्वारा सजा दिया गया।
आज वह दिन आ गया बाबा के आने का, जैसे ही बाबा ने रोहतक शहर में बाबा का प्रवेश हुआ सभी भक्त एक जगह एकत्रित हो गए और खूब ढोल ,नगाड़ो और फूल वर्षा द्वारा बाबा का स्वागत किया गया। सभी भक्तोँ द्वारा अपने प्रभु की नज़र उतारी गयी और उन पर फूलो की माला चढ़ाई गयी। उसके बाद भकतलोग अपने बाबा Jai Shree Shyam की आज्ञा से उन्हें अपने गोद में उठाकर उनके नाम के जय कारे लगते हुए फूल वर्षा करते हुए पद यात्रा करके उन्हें निर्माण किये किये मंदिर स्थल तक लेकर गए।

वहां भक्तोँ द्वारा “बाबा ” का आरती तिलक कर उनका स्वागत किया गया। उनके आगमन की ख़ुशी में भक्तोँ द्वारा गीत गाये गए और सब बस एक टक अपने प्रभु को निहारते रहे। मंदिर में “बाबा” के प्रवेश के पश्चात् “बाबा ” की प्राण प्रतिष्ठा का कार्य पुरे विधि विधान द्वारा किया जो की पांच दिन चला। जिसमे सुबह शाम “बाबा” की पूजा आरती पुरे धार्मिक तरीके से की गयी।
“श्री खाटूश्याम बाबा ” की बाबा की आने की ख़ुशी में भक्तोँ द्वारा उनके स्वागत में सभी भक्तजनो के लिए भंडारा की सेवा व् प्रभु के गुणगान क लिए उनके सम्मान में जागरण का आयोजन किया गया जिससे सभी भक्त पूरी रात उनकी भक्ति कर सके और दूर दूर से भक्त आकर अपने “बाबा ” का दर्शन कर सके।
प्राणप्रतिष्ठा के पश्चात् जब बाबा का स्वरुप सब भक्तोँ के समक्ष आया सभी भक्तोँ की आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए। मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित बाबा स्वरुप ऐसा लगा मनो बाबा साक्षात् उनके समक्ष है। अनेक प्रकार के फूलों ,आभूषणों, और मोरपंख द्वारा सुसज्जित प्रभु का रूप अत्यंत ही मनमोहक लग रहा था।
२३ नवंबर एकादशी को जागरण की रात शुरू हो गयी पुरे रोहतक शहर व् उनके अस पास के शहरों से लोग बाबा के दर्शन करने व् उनके जागरण में सम्मलित हो बाबा की भजनो में भाव विभोर होने की लिए प्रस्तुत हुए। सभी भक्तोँ ने जागरण में भजनो के साथ प्रभु की सेवा में प्रस्तुत प्रसाद का भी आनंद लिया। जागरण पूरी रात चला इतने दिनों की मेहनत के पश्चात भी भक्तोँ में ज़रा भी थकान का भाव भी नहीं था। उनके अंदर पूरी जागरण की रात हर्ष और उल्लास बना रहा। पूरी रात भक्तोँ ने बाबा के भजनो का आनंद पुर नृत्य और तालियों के साथ लिया। सुबह की आरती व् प्रसाद के साथ जागरण का कार्येक्रम सम्पूर्ण हुआ। सभी भक्तों में ख़ुशी का भाव था की उनके बाबा उनके क्षेत्र में निवास हुआ।
पूरी रात जागरण में भजनो का आनंद लेने के पश्चात् भी भक्तो में बाबा के प्रति भक्ति और प्रेम का उत्साह बना रहा। जागरण के समाप्त होने के पश्चात् भक्तों के द्वारा “बाबा ” को फूलो से सजे रथ में सवार कर और भक्तों द्वारा कलश व् “बाबा” के नाम के निशान उठा ढोल नगाड़ो के साथ नगर में कलश व् निशान यात्रा की गयी। पूरी यात्रा के दौरान भक्तों ने पुरे आनंद व् जोश के साथ बाबा के Jai Shree Shyam जयकारे लगाए और यात्रा सम्पूर्ण होने के बाद सभी भक्तों ने बाबा को पुनः मंदिर में विराजमान करवाया और बाबा का आशीर्वाद लिया। बाबा ने भी सभी भक्तों को अपना संपूर्ण प्रेम और आशीर्वाद दिया और सदा के लिए रोहतक में विराजित रह भक्तों अपना प्रेम बरसाए रखने का आशीर्वाद दिया।
आज रोहतक के संजय कॉलोनी में ” श्री खाटू श्याम रोहतक धाम ” मंदिर में बाबा को विराजमान हुए २ वर्ष पुराण होने वाले हैं और आज भी वह के स्थानीय लोगो के मन में बाबा के प्रति प्रेम और विश्वास में कोई कमी नहीं आयी है बल्कि यह प्रेम समय के साथ और बढ़ा है। भक्तजन यहां रोज सुबह शाम आकर बाबा की सेवा व् पूजा अर्चना बड़े प्रेम व् भक्ति भाव से करते हैं। प्रत्येक त्यौहार पर मंदिर में कार्येक्रम का आयोजन किया जाता हैं और त्यौहार को बड़े प्रेम भाव से बाबा की शरण में रहकर मनाया जाता है। प्रत्येक त्यौहार पर मंदिर के सदस्यों द्वारा भजन कीर्तन का कार्येक्रम और प्रसाद सेवा का आयोजन किया जाता है। मंदिर को फूलों व् गुब्बारों से सजाया जाया जाता है।






मंदिर की पहली वर्षगांठ पर भी बाबा के सम्मान व् प्रेम में पुरानी यादों को ताज़ा किया गया और फेर से जागरण का आयोजन करवाया गया। जिसमे भक्तों ने हर बार की भक्तों ने रंग जमाया और भजन संध्या का पूरा उमंग और जोश के साथ आनंद लिया। यह उमंग और उत्साह सदा ही भक्तो में यु ही बना रहेगा।
यहां एक बात और ध्यान देने योग्य हैं हैं आपको लगता होगा की माधव और उसके मित्रों की जिम्मेदारी मंदिर के निर्माण के साथ ख़तम हो गयी परन्तु असा नहीं हैं क्योकि सब यह जानते हैं की एक जिम्मेदारी अनेको जिम्मेदारियों के साथ आती हैं। जो लोग यह समझते हैं कि उन्होंने ने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी परन्तु ऐसा नहीं उनसे जाने अनजाने में बाकि जिम्मेदारियां अनदेखी हो जाती हैं। परन्तु बाबा के आशीर्वाद से माधव और उनके मित्रों ने अपने एक जिम्मेदारी के साथ जुडी बाकी जिम्मेदारियों को ध्यान में रखा। वह सब अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ मंदिर के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को बड़े प्रेम और श्रद्धा भाव से निभाते हैं। वह समय-समय पर मंदिर कि व्यवस्था को बनाये रखने का प्रयास करते हैं और मंदिर में किस समय किस चीज़ कि आवशयकता है उन चीज़ो कि पूर्ति करने का प्रयास करते हैं ताकि मंदिर में बाबा के दर्शन को आने वाले भक्तो को सुविधाएं प्राप्त करवाई जा सके।
इस प्रयास में यह भक्त सदा ही जुड़े रहेंगे और “बाबा” कि कृपा रही तोह जल्द ही यह भक्त जगत कल्याण कि ओर अपना पहला कदम बढ़एंगे ताकि मंदिर में आये दान और सेवा कि मदद से वह बच्चो और बुज़ुर्गों कि सहायता के प्रति अपना रख करेंगे। भक्तों का अपने भगवन के प्रति इस भाव को हम साधारण लोग नहीं समझ पाएंगे क्योकि यह भाव तोह सिर्फ वही भक्त समझ पाएंगे जिन्होंने से अपने इष्ट कि सिर्फ पूजा नहीं कि बल्कि उनसे प्रेम किया हैं उन्हें अपने मन मंदिर में बिठाया हैं अपने हर पल में उन्हें ध्याया है। अपनी खुशियां ओर गम सब उनको समर्पित किया है। कहते हैं जो सिर्फ अपनी जिम्मेदारी कि चिंता करते हैं वह सिर्फ अपने ओर अपने परिवार तक सिमित रहते हैं परन्तु जो अपनी जिम्मेदारी ही अपने भगवन को सौंप देते हैं भगवन उनके जिम्मेदारी स्वयं उठाकर लोक कल्याण कि कार्यें उन पर सौंप देते है।
ईश्वर से संबंध कोई बाहरी रिश्ता नहीं, बल्कि एक आंतरिक अनुभूति है।
यह वह बंधन है जो शब्दों से परे, आत्मा से जुड़ता है — न दिखता है, न सुना जाता है, बस महसूस किया जाता है।
जब हम अपने मन के शोर को शांत करते हैं, तो भीतर से एक नर्म आवाज़ उठती है — वही ईश्वर की पुकार होती है।
ईश्वर से संबंध में विश्वास होता है, समर्पण होता है, और सबसे बढ़कर, एक अडिग प्रेम होता है।
यह रिश्ता: प्रश्नों में नहीं, प्रार्थनाओं में जीता है,
माँग में नहीं, आभार में फलता-फूलता है,
दूरी में नहीं, निकटता की अनुभूति में बसता है।
🌿 कुछ भावपूर्ण पंक्तियाँ:
“ईश्वर दूर नहीं, बस भीतर झाँकने की देरी है।”
“जब सब साथ छोड़ते हैं, तब ईश्वर सबसे पास होते हैं।”
“प्रेम, आस्था और शांति — यही हैं ईश्वर की सबसे सच्ची परिभाषाएँ।”
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