Positive Parenting

Positive Parenting Tips

     नमस्कार  दोस्तों मैं हूँ आपकी सखी राधिका आपके अपने पेज पर स्वागत करती हूँ।  दोस्तों आज हम एक बहुत ही जरुरी विषय पर चर्चा करेंगे जो कि हैं Positive Parenting।  दोस्तों क्या आप जानते हमारे घर की आत्मा, ख़ुशी , जीवन किस में  समाया हैं ?

Parenting

जी हाँ , बिलकुल सही 

बच्चे , हमारे घर की जान हमारे घर के बच्चे होते हैं जिनकी हंसी , शरारत , शोर शराबा , तूफानी हरकते हम सबके घरों में जान डालती हैं।  अपने अक्सर देखा होगा जब किसी घर में उनका बच्चा कुछ समय के लिए घर से बाहर  जाता हैं तोह उनके घर का माहौल शांत सा हो जाता हैं तोह बच्चे के परिवार वालों को कहते सुना होगा कि बच्चे के बिना उनके घर की रौनक की चली गयी , अगर बच्चा बीमार हो जाये तोह वह शांत सा हो जाता है तब भी बच्चे के माता पिता कहते हैं इसकी शरारतों के बिना तो घर भी घर जैसा नहीं लगता। 

अपने बच्चों की छोटी से छोटी चीज़ें भी माता पिता के लिए बहुत मायने रखती हैं।  अगर बच्चा सबसे अच्छे से व्यव्हार करता हैं अच्छे से पढाई करता हैं खेल – कूद में भी अच्छा हैं तोह पैरेंट बहुत खुश होते हैं पर जब वही बच्चा गलत व्यव्हार करता हैं और बाकि चीज़ो में ध्यान नहीं देता तोह पेरेंट्स बहुत परेशां भी होते हैं। अगर कोई व्यक्ति हमारे बच्चे की अच्छे काम की तारीफ कर दें तो हम बहुत खुश होते हैं पर जब हमारा बच्चा कोई गलत बात करता है तो हम शर्मिंदा महसूस करते हैं। अब बच्चे को ये सही और गलत का फर्क बताना नहीं होता समझाना होता हैं।  

 दोस्तों ये बच्चों को सही और गलत का मतलब समझाना ही असली   पेरेंटिंग  हैं तोह आज हम इस ब्लॉग के माध्यम से जानेंगे की सही   पेरेंटिंग  की दिशा क्या हैं और यह क्यों ज़रूरी हैं। 

पेरेंटिंग का महत्व

दोस्तों एक बच्चे के लिए उसका घर उसका परिवार ही जीवन की सबसे पहली पाठशाला है। बच्चे जिसघर परिवार के माहौल में बड़े होते हैं,जो चीज़ें वो अपने परिवार में देखते है सुनते हैं  वही चीज़ें उनकी सोच, संस्कार और व्यक्तित्व को आकार देता है। पेरेंटिंग (Parenting) यानी माता-पिता की   पेरेंटिंग , केवल बच्चे के व्यवहार ही नहीं बल्कि उसके सोच समझ के तरीके उसके मानसिक विकास और उसके पूरे भविष्य को प्रभावित करती है। इसलिए परिवार में सही पेरेंटिंग का होना बेहद ज़रूरी है। 

  • संस्कारों की नींव

माता-पिता बच्चे के पहले गुरु होते हैं। वे जो सिखाते हैं, वही बच्चा जीवनभर अपनाता है। माता-पिता का प्यार और समर्थन बच्चे को मजबूत आत्मविश्वास देता है उसे सोचने व् समझने की शक्ति व् प्रेरणा देता हैं। पारिवारिक शिक्षा से बच्चा समाज से जुड़ाव और सामाजिक मूल्य और रिश्तों की अहमियत समझाता है।

परिवार में अच्छी पेरेंटिंग के तरीके

  1. प्यार और धैर्य – बच्चे हमेशा कोई न कोई जिद्द करते हैं या फेर अगर उनकी बात को न माना जाये तोह उनको गुस्सा आता हैं ऐसे में बच्चे  को डांट-फटकार से ज़्यादा प्यार और धैर्य से समझाना असरदार होता है।
  2. खुला संवाद – माता-पिता  को अपने बच्चों से रोज़ बातचीत करनी चाहिए ,उनसे उनके कार्यों से सम्बंधित प्रश्न करने चाहिए ताकि हम ये समझ सकें की हमारे बच्चे की रुचियाँ क्या हैं और डर क्या हैं। उनकी भावनाएँ को समझना चाहिए  और उनकी छोटी-छोटी बातों को भी महत्व देना चाहिए। 
  3. अनुशासन के साथ स्वतंत्रता – बच्चो को हर चीज़ को एक्स्प्लोर करना पसंद होता है ताकि वह चीज़ों के प्रति अपनी जिज्ञासा को शांत कर सकें बच्चों को सही और गलत का फर्क बताना ज़रूरी है, लेकिन उनकी रुचियों को आगे बढ़ाने की आज़ादी भी देनी चाहिए। 
  4. उदाहरण बनना – बच्चे वही सीखते हैं जो वे अपने घर में देखते हैं। इसलिए माता-पिता को अपने व्यवहार से अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। अगर माता पिता घर में अछि आदतों को फॉलो करेंगे तोह बच्चे भी उन आदतों को फॉलो करेंगे।  
  5. समय देना – बच्चों को महंगी चीज़ों से ज्यादा ज़रूरत माता-पिता के समय और ध्यान की होती है। हम अक्सर यही गलती करते  हैं की बच्चो को खिलोने दे देते हैं या कुछ ऐसी चीज़ें दे देते हैं जिससे वह व्यस्त रहे और आप अपने कार्यें कर सकें लेकिन बच्चों को सबसे ज्यादा ज़रूरत आपके समय की होती हैं वो आपके साथ खेलना चाहते हैं

    बच्चों को डांटना या पीटना सही हैं या गल्त ?

       दोस्तों आजकल के समय में सबसे बड़ा मुद्दा यह हैं कि बच्चों को डांटना सही या गलत क्योकि आजकल हर जगह यही बात सबसे अहम् हो जाती हैं की अगर माँ बाप अपने बच्चे को डांटते हैं तोह हर कोई उन्हें कह देता हियँ बच्चों को डांटना नहीं चाहिए उन्हें प्यार से समझाना चाहिए। बच्चों को डांटने से बच्चे बिंगड़ जाते हैं , जिद्दी हो जाते हैं , या फिर बच्चों के मन में  डर  बैठ जाता हैं माता पिता के प्रति और बच्चों के मन में गुस्से की भावना उत्पन्न होती हैं। 

    दोस्तों यह बात सही हैं की बच्चों अत्यधिक मात्रा में डांटना , गुस्सा करना अत्यधिक सख्ती रखना बच्चे पर , या फिर गलती करने पर पीटना यह बच्चे के मानसिक स्वास्थय और भावात्मक स्वस्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता हैं।  बच्चों का मन भोत नाज़ुक होता हैं यदि उस पर अत्यधिक दबाव डाला जाये तोह वह कमजोर हो जाता हैं जिसका असर उसके भविष्य पर पड़ता हैं। 

    बच्चों को अत्यधिक मात्रा में डाटने के नुकसान 

    1. बच्चों में नकरात्मक डर  पैदा होना : बच्चों को हर बात पर डांटने से या गुस्सा करने से बच्चे के मन में अपने माता पिता के प्रति नकारात्मक डर उत्पन्न हो जाता हैं । जरूरत पड़ने भी बच्चा कोई भी बात अपने माता पिता से शेयर करने में डरता है यह सोच कर कहीं माता पिता उसकी बात सुने बिना ही डांटने न लग जाए ।
    1. बच्चों में गुस्सा बढ़ना : जब माता पिता अपने बच्चे की इच्छाओं पर उसे डांटते है उसे उस इच्छा के पीछे के सही ओर गलत परिणामों को समझने की बजाए उसे डांट मार कर चुप करवा देते हैं टोह बच्चे के मन में गुस्से की भावना उत्पन्न होती है और यह भावना धीरे धीरे उसका स्वभाव बन जाती हैं ।
    1. बच्चों के मन में नफरत आना : जब डांट ओर गुस्सा बच्चों के मन में बढ़ जाता हैं और उसे सही समय पर अपने प्रेम ओर स्नेह से ठीक न किया तोह बच्चों के मन में स्नेह वाला स्थान खाली हो जाता हैं और अगर उन्हें वो स्नेह न मिले तो कई बार ये खाली स्थान नफरत से भर जाता हैं !
    1. बच्चों का मानसिक विकास कमजोर होना : कई बार बच्चें अपने माता पिता की डांट से इतने डरने लग जाते हैं कि वह उनके डर से परे कुछ सोच ही नहीं पाते उनका मानसिक विकास रुक जाता हैं क्योंकि कुछ भी नया सोचने समझने से पहले उनके मन में डर का भाव आ जाता हैं।
    1. बच्चों का भावत्मक रूप से कमजोर होना : जब बच्चों में हद से ज्यादा माता पिता का डर हो जाता हैं तब बच्चें अपनी बातों को अपने माता पिता से साँझा करने में कतराते हैं वह अपनी  ही रखते हैं। उनके मन में जो भी शंकाए या डर के भाव होते हैं वह उन्हें सांझा कर नहीं पाते और जिससे वह भावात्मक रूप से कमजोर हो जाते हैं जिससे वह छोटी स छोटी बात को भी मन पर लगा लेते हैं और वह मुश्किलों का सामना करने से डरते हैं और कई बार ये डर कई बार नेगेटिव भी हो जाता हैं की बच्चें और माता पिता में दुरी आ जाती हैं बच्चें  को अपने माता पिता पर भरोसा नहीं कर पाते। 

    सकरात्मक डांट ज़रूरी

    दोस्तों ये तोह हमने जान लिया की बच्चों को अत्यधिक डांटने के क्या दुष्प्रभाव होते हैं पर एक सवाल आता हैं कि क्या बच्चों को बिलकुल भी नहीं डांटना नहीं चाहिए।  यह समस्या हर परिवार में आजकल देखी जाती हैं जब माँ या पिता बच्चों को उनकी किसी गलती पर डांटते हैं तोह घर के बड़े बुज़ुर्ग हमेशा इस बात पर नाराज़ होते हैं की बच्चों को क्यों डांटा बच्चों को प्यार से समझाओ बच्चों को डाँटोगे तोह वो जिद्दी बन जायेंगे। अत्यधिक परिवारों में यह एक बहोत बड़ा कारण बन गया हैं पारिवारिक कलेशों का। 

           दोस्तों इस बात पर मैं कहना चाहूंगी की हर बच्चा अलग होती हैं उसकी अलग सोचने समझने की शक्ति होती हैं हम मानते हैं की बच्चों को डांटना गलत हैं पर माँ बाप बच्चों को उनकी गलतियों या ज़िद्दों पर उन्हें बिलकुल नहीं डांटेंगे तोह इसके गलत परिणाम होंगे। बच्चों को कई बार डांटना भी बहुत ज़रूरी होता हैं अब उनको कितना डाटना हैं कैसे डाटना हैं ये बच्चें की उम्र पर निर्भर करता हैं।

    सकरात्मक डांट क्यों ज़रूरी ?

    1. बच्चों को सकारात्मक डांट इसलिए ज़रूरी हैं ताकि वह सही और गलत में फर्क समझ सकें अगर बच्चा जिद्द पर अड़ गया और माता पिता जानते हैं की उनकी जिद्द गलत हैं और बच्चा प्यार से समझाने  पर नहीं समझ रहा हैं तोह कई बार थोड़ा डांटना ज़रूरी होता हैं। 
    1. अगर बच्चा गलत आदतों को अपना रहा हैं या कई बार बच्चा बड़ों का अपमान करता हैं और बच्चों को प्यार से बार बार समझाया जा चूका हैं की ये गलत बात हैं और वह नहीं मान रहा हैं तोह उसे डाटना ज़रूरी होता हैं क्योकि अगर उसे डांटा नहीं गया तोह उसे लगेगा की उसने कोई गलती नहीं की हैं और वह हए बार बार करेगा। 
    1. बच्चों में नारात्मक नहीं पर एक सकरात्मक डर ज़रूर होना चाहिए जो उसे गलत कामो की तरफ आगे बढ़ने से रोके क्योकि अगर उसे ज़रा भी डर नहीं होगा तोह वह अपना जीवन खराब कर लेगा की सोच कर की उसे कोई कुछ नहीं कहेगा। 
    2. बाहों को कई बार डांटने के साथ साथ कई बार सजा भी देनी पड़ती हैं की अगर बच्चा डाटने के बाद भी अपनी गलती नहीं सुधार रहा हैं ताकि उसे ये अहसास हो की अगर वो कई गलती करता हैं तोह उसे सजा भी मिल सकती हैं। 
    3. दोस्तों बच्चों को एक न एक दिन बाहरी दुनिया सामना ज़रूर करना होता हैं आज हम अपने प्रेम में अपने बच्चें की गलतियां नज़र अंदाज़ कर सकते हैं उसे हर गलती पर माफ़ कर सकते हैं पर ये समज उसे गलतियों के लिए माफ़ नहीं करेगा उसे इस बात का अहसास करवाना की अगर हमारे घरवाले हमारी बात को माफ़ नहीं करते तोह कोई बाहर वाला भी नहीं करेगा। 

    दोस्तों हम जानते हैं की कई बार अपने बच्चों को डाटना हमे या हमारे घर के बुज़ुर्गों को अच्छा नहीं लगता पर ये बात सच हैं की एक माँ जिसकी अपने बच्चें से साँसे जुडी हैं अगर वह कई बार अपने बच्चें के गुस्सा करती हैं या कई बार एक थप्पड़ मार भी देती हैं तोह थप्पड़ का दर्द का उस बच्चें से ज्यादा उसे महसूस होता हैं पर बच्चा किसी गतल रह पर न जाये , लोग उसकी निंदा न करे तोह उसके लिए वह कई बार कड़ा कदम उठाना पड़ता हैं। 

    11. धार्मिक शिक्षा ज़रूर दें

         दोस्तों हम सब जानते हैं की हमारे प्यारे कान्हा जी कितने अधिक नटखट थे उनकी माँ यशोदा उन्हें कितना डांटती थी और मरती भी थी पर उनसे प्यार भी बहुत अधिक करती थी तोह उनकी  पेरेंटिंग  गलत थी ? 

    दोस्तों एक बात ज़रूर कहूंगी कि बच्चों को धार्मिक शिक्षा ज़रूर दे उन्हें अपने भगवन से ज़रूर जोड़े , उन्हें पूजा करना प्रार्थना करने की आदत ज़रूर डालें इससे बच्चों में सकरात्मक शक्ति विकास होगा , बच्चों को धार्मिक पुराणों को ज्ञान अवश्य देना चाहिए उन्हें बाल कृष्ण , बाल हनुमान, रामायण महाभारत का ज्ञान ज़रूर देना चाहिए ताकि आपके बच्चें आपकी धार्मिक धरोहर को संभाल सके।  आज के समय में माता पिता का अधिकतर ज़ोर उनको स्कूल शिक्षा देने पर रहता हैं। माता पिता सोचते हैं कि उनके बच्चे आज के कल्चर और टेक्नोलॉजी में आगे बढे न की अध्यात्म की और बढे। 

     बच्चों की  पेरेंटिंग  के लिए 10 सुनहरे टिप्स

    1. निर्विवाद प्यार दें

    बच्चे की सबसे बड़ी ज़रूरत है माता-पिता का बिना शर्त प्यार। माता पिता अपनी इच्छाओं का बोझ बच्चों पर न डालें जिससे वह आपकी सोच से अलग न जा पाए।  जैसे हमने कई बार देखा की माँ बाप कहते हैं बेटा आपको बड़े होकर डॉक्टर बनना है या फेर टीचर बनना हैं यह निर्णय किर्प्या बच्चों को उनकी रूचि के अनुसार लेने दे ताकि वह अपने चुने हुए काम को पुरे मन से कर पाए।  उन्हें ये महसूस कराएँ कि आप हमेशा उनके साथ हैं, चाहे उन्होंने कोई गलती की हो या सफलता पाई हो। जब बच्चा समझता है कि उसे हर हाल में प्यार मिलेगा, तो उसमें आत्मविश्वास और सुरक्षा की भावना विकसित होती है।

    👉 उदाहरण: अगर बच्चा परीक्षा में अच्छा स्कोर नहीं कर पाता, तो उसे डाँटने की बजाय समझाएँ कि मेहनत जारी रखे, और आप हमेशा उसका साथ देंगे।

    2. अच्छे श्रोता बनें

    माता पिता रोज अपने बच्चों को समय दे और उनसे बातें करें उनसे उनका दिन भर के कार्यों के बारे में पूछे उनके दोस्तों के बारे में बातें करें। अक्सर माता-पिता बच्चों की बातें बीच में काट देते हैं या जल्दी-जल्दी जवाब देते हैं। लेकिन बच्चों की छोटी-छोटी बातें भी उनके लिए बहुत मायने रखती हैं। जब आप ध्यान से सुनेंगे, तो बच्चा आप पर भरोसा करेगा और अपने मन की बातें शेयर करेगा।

    👉 याद रखें – सुनना, समझना और फिर जवाब देना ही पेरेंटिंग का असली राज़ है।

    3. गुणवत्ता वाला समय बिताएँ

    बच्चे के लिए आपके साथ बिताया समय सबसे कीमती होता है जिसे वह एन्जॉय करता हैं।  रोज़ कम से कम 20–30 मिनट बच्चों के साथ बिताएँ। इस दौरान न मोबाइल, न टीवी – सिर्फ आप और बच्चा।

    👉 उदाहरण: साथ में कहानी पढ़ें, चित्रकारी करें, या उनकी पसंद का खेल खेलें या बच्चों को नयी नयी क्रियाएं सिखाएं।  इससे बच्चा महसूस करेगा कि वो आपके लिए सबसे अहम हैऔर साथ साथ वह आल राउंडर भी बनेगा 

    4. सकारात्मक अनुशासन

    अनुशासन ज़रूरी है लेकिन कठोरता नहीं। बच्चों को नियम और सीमाएँ सिखाना चाहिए लेकिन उन्हें प्यार और समझदारी से लागू करना चाहिए। बच्चा आपको देखकर ही सीखेगा अगर आप बच्चों के सामने नियमो का पालन करोगे तोह बच्चा भी करेगा और उसे अपने जीवन में ढाल लेगा। 

    👉 उदाहरण: अगर बच्चा देर तक टीवी देख रहा है, तो गुस्सा करने के बजाय कहें – “अब टीवी का टाइम खत्म हुआ, चलो हम मिलकर एक किताब पढ़ते हैं।”

    5. सीखने की आदत डालें

    बच्चे स्वभाव से जिज्ञासु होते हैं। उन्हें सवाल पूछने दें, नई चीज़ें एक्सप्लोर करने दें। किताबें, कहानियाँ, पहेलियाँ और छोटे-छोटे प्रयोग उनकी सीखने की क्षमता को बढ़ाते हैं। उन्हें नयी नयी चीज़े दिखाए व् सिखाये। 

    👉 याद रखें – पढ़ाई सिर्फ स्कूल तक सीमित नहीं है, असली शिक्षा घर से शुरू होती है।

    6. रोल मॉडल बनें

    बच्चे वही सीखते हैं जो वे अपने माता-पिता को करते हुए देखते हैं। अगर आप ईमानदार, मेहनती और दयालु हैं, तो बच्चा भी इन्हीं गुणों को अपनाएगा। अगर आप गलत शब्दों व् गलत अड्डों से दूर रहोगे तोह आपका बच्चा भी दूर रहेगा। अगर आपका बच्चा आपको अपशब्दों का प्रयोग करते हुए देखता हैं या गलत कार्यों को करते हुए देखता हैं तोह एक न एक दिन वह भी उसे अपना लेगा। 

    👉 उदाहरण: अगर आप चाहते हैं कि बच्चा सच बोले, तो सबसे पहले आपको खुद हमेशा सच बोलना होगा।

    7. प्रशंसा करें और हौसला बढ़ाएँ

    बच्चे के छोटे-छोटे प्रयासों की सराहना करें। यह उनकी आत्मविश्वास और प्रेरणा को बढ़ाता है। केवल परिणाम नहीं बल्कि उनकी कोशिश की भी तारीफ़ करें।

    👉 उदाहरण: अगर बच्चा ड्रॉइंग करता है, तो उसे “वाह, बहुत अच्छा!” कहें, चाहे ड्रॉइंग परफेक्ट न हो।

    8. जीवन कौशल सिखाएँ

    अक्सर हम बच्चों के प्रेम में उन्हें कुछ चीज़े सीखना भूल जाते हैं जैसे की घर के कामो में माँ की स्य पिता की सहायता करना। केवल पढ़ाई ही नहीं, बल्कि बच्चों को जीवन के मूलभूत कौशल भी सिखाएँ – जैसे जिम्मेदारी लेना, चीज़ें साझा करना, समय का महत्व समझना और आत्मनिर्भर बनना। बच्चों को हर चीज़ सिखाना बहुत ज़रूरी होता हैं जैसे खाना बनाना और अपने कार्यें स्वयं करना, ताकि ज़रूरत पड़ने पर बच्चा अपना ख्याल रख सके और मजबूत बन सकें।  

    👉 उदाहरण: उन्हें छोटे-छोटे काम दें, जैसे अपना बैग खुद पैक करना या खिलौने खुद समेटना।

    9.स्वस्थ जीवनशैली अपनाएँ

    आजकल बच्चे ज्यादातर मोबाइल और टीवी में व्यस्त रहते हैं। उन्हें संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और आउटडोर खेलों की आदत डालें। स्क्रीन टाइम सीमित रखें और परिवार के साथ मिलकर हेल्दी एक्टिविटी करें।

    👉 उदाहरण: रोज़ाना परिवार के साथ 15–20 मिनट वॉक पर जाना।

    10. बच्चे का दोस्त बनना 

    पेरेंटिंग में आज सबसे बड़ा स्टेप हैं बच्चे का दोस्त बनना।  हम अक्सर यही गलती कर जातें  हैं  की बच्चे की माता पिता बनने की भाग दौड़ में उनका दोस्त बनना भूल जाते हैं। हमें अपने बच्चों का वो दोस्त बनना हैं जिससे बच्चा आप पर भरोसा करें ताकि बड़ी से बड़ी या छोटी से छोटी बात सबसे पहले आपको आकर बताये। अगर वह कोई गलती भी करें तोह आपको आकर बता सकें। आपको दोस्त बनकर अपने माता पिता की जिम्मेवारी पूरी करनी हैं उसकी सफलताओं पर उसके साथ नाचना और कूदना भी हैं और उससे गलती होने पर उससे नाराज़ और सजा भी देनी हैं। उसे माफ़ भी करना हैं और गलती को सुधरवाना भी हैं। ताकि वह माता पिता के प्रेम का गलत फायदा न उठाये। 

    👉 उदाहरण: अगर बच्चा चीज़ तोड़ देता है, तो चिल्लाने के बजाय शांत रहें और उसे समझाएँ कि चीज़ों का ध्यान रखना क्यों ज़रूरी है।

    क्या बच्चों में तुलना करना सही है ?

    दोस्तों बच्चों में तुलना करना कभी भी सही नहीं हैं क्योकि दोस्तों हर बच्चे की सोच समझ और प्रवृति अलग होती हैं उसकी इच्छाएं अलग होती हैं उसकी पसंद अलग होती हैं।  कई बार हम देखते हैं की अगर कोई बच्चा डांस अच्छा  कर रहा होता हैं तोह हम सोचते हैं की काश हमारा बच्चा भी ऐसे डांस करे अगर कोई बच्चा पढाई में अच्छे नंबर ला रहा होता हैं तोह हम सोचते हैं हमारा बच्चा भी ऐसे ही नंबर लाये। अगर हमारा बच्चा दूसरे बच्चों की तरह नहीं करता तोह उसे डांटते है। पर यहां पर समझने की बात यह हैं की हो सकता हैं की आपका बच्चा वो सब करने में निपुण नहीं है जो दूसरा बच्चा करने में निपुण हैं जबकि आपका बच्चा किसी और कलां में निपुण और सबसे आगे हो। यहां पर आपको अपने बच्चे का टैलेंट पहचानने और उसे उस कलां के लिए प्रेरित करने की आवशयकता होती हैं।  हर बच्चे की अपनी अलग कुशलता अपनी अलग निपुणता होती हैं तोह अगर हम ऐसे में दो बच्चों में तुलना करेंगे तोह उनमे हीं भावना आ जाएगी और बच्चे को लगेगा की उसकी कलां का कोई मोल नहीं है। जिस कारण वह जिस कलां में निपुण होगा वह उससे भी विमुख हो जायेगा। 

    ❌ बच्चों में तुलना करने के नुकसान

    1. आत्मविश्वास कम हो जाता है

    जब माता-पिता बार-बार बच्चे की तुलना किसी और से करते हैं – जैसे पड़ोसी के बच्चे, भाई-बहन या दोस्त – तो बच्चा खुद को काम समझने लगता हैं उसे लगता हैं उसके अंदर कोई भी गुण नहीं हैं। 

    2. हीनभावना बढ़ती  है

    अगर माता पिता हर बार बच्चे के कार्यों की तुलना दूसरे बच्चे से करने लगते हैं और बार बार यह जताते हैं की उस दूसरे बच्चे की तरह करो तोह बच्चा सोचने लगता है कि वह कभी भी अच्छा नहीं कर सकता, चाहे कितनी मेहनत कर ले।

    3. ईर्ष्या और जलन की भावना

    हर बार माता पिता का दूसरे बच्चों को अच्छा बताना और तुलना से बच्चे के मन में दूसरों के प्रति जलन और नकारात्मकता आ सकती है।

    4. माता-पिता से दूरी

    लगातार तुलना सुनने से बच्चा माता-पिता से भावनात्मक रूप से दूर होने लगता है उसे लगता हैं की उसके माता पिता को उससे प्रेम नहीं हैं.

    5. क्रिएटिविटी दब जाती है

    हर बच्चा अलग टैलेंट लेकर आता है। तुलना करने से बच्चा अपने वास्तविक टैलेंट को खोज ही नहीं पाता।

     बच्चों को तुलना की बजाय क्या करना चाहिए?

    1. प्रोत्साहित करें (Encourage करें) – उनकी मेहनत और छोटे-छोटे प्रयासों की तारीफ़ करें अगर बच्चा कुछ भी नया कार्य करने की कोशिश करता हैं तोह उसकी सराहना करे अगर उस कार्यें में कोई गलती भी हैं तोह उससे सीधे से गलत न कह करके उसे कुछ नया सिखने के बहाने से सही करना सिखाये जिससे वह और क्रियात्मक रूप से सोच सके.
    2. उनकी खूबियों को पहचानें – हर बच्चा अलग है। किसी की पढ़ाई में रुचि होती है तो किसी की खेल या आर्ट में उन खूबियों को पहचानने में उनकी मदद करें व् उन्हें बढ़ावा दे। 
    3. सकारात्मक माहौल दें – उन्हें यह महसूस कराएँ कि गलती करना भी सीखने का हिस्सा है।
    4. लक्ष्य तय करना सिखाएँ – दूसरों से बेहतर बनने की बजाय खुद से बेहतर बनने की प्रेरणा दें।
    5. तुलना की जगह सहयोग करें – बच्चे को समझाएँ कि हर किसी की यात्रा अलग होती है.


    निष्कर्ष

    दोस्तों पेरेंटिंग सभी बच्चों  के लिए एक जैसी नहीं होती हैं। कई बार परिवार के कुछ सदस्य ऐसे कहते हैं की हमने तोह अपने बच्चों को ऐसे पाला हैं हमें कभी कोई समस्या नहीं आयी। हर बच्चें का किसी चीज़ या बात को समझने का तरीका अलग होता हैं जो की उसके माता पिता को पता होता हैं। हर परिवार का माहौल अलग होता हैं अगर हम कहें हम अपने बच्चों की बच्चों की   पेरेंटिंग  ऐसे करें जैसे हमारे माता पिता ने हमारी की तोह ऐसा  कभी संभव नहीं हो पायेगा क्योकि सब कुछ समय के साथ बदल जाता हैं। 

    पॉज़िटिव पेरेंटिंग केवल बच्चों की   पेरेंटिंग  का तरीका नहीं है, बल्कि यह माता-पिता और बच्चों के बीच मजबूत रिश्ते की नींव है। जब हम बच्चों को प्यार, धैर्य और समझदारी के साथ मार्गदर्शन देते हैं, तो वे न केवल अच्छे संस्कार सीखते हैं, बल्कि आत्मविश्वासी और जिम्मेदार भी बनते हैं। सकारात्मक अनुशासन बच्चों को डराने या दंडित करने के बजाय उन्हें सही रास्ता दिखाता है। आज की बदलती दुनिया में ज़रूरी है कि माता-पिता अपने बच्चों के साथ दोस्ती का रिश्ता रखें, उनकी भावनाओं को समझें और उन्हें खुलकर अपनी बात कहने का अवसर दें। इस तरह पेरेंटिंग न केवल आसान बनती है बल्कि बच्चों के व्यक्तित्व में संतुलन और खुशी भी आती है।

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